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Krishna Draupadi Katha: भगवन श्री कृष्ण ने इस तरह से बचाया द्रोपदी का चीर हरण, पढ़िए पूरी कथा

Krishna Draupadi Katha

Krishna Draupadi Katha : संसार में मित्रता का रिश्ता सबसे अनोखा और पवित्र रिश्ता माना जाता है। ऐसा ही रिश्ता भगवान श्री कृष्ण और द्रौपदी का भी था। भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी सखी मानते थे। जब भी द्रौपदी किसी मुसीबत में होती तब वह सिर्फ भगवान श्री कृष्ण को ही पुकारती थी। द्रौपदी भी भगवान श्रीकृष्ण को अपना सच्चा मित्र मानते थे। आज हम आपको भगवान श्री कृष्ण और जो द्रोपदी की कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।

Krishna Draupadi Katha : कृष्ण और द्रोपदी का रिश्ता

आपको बता दें, द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद द्वारा किए गए यज्ञ में यज्ञ कुंड से उत्पन्न हुई थी। यज्ञ कुंड से उत्पन्न होने के कारण द्रौपदी को यज्ञ सैनी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि द्रौपदी का रंग सांवला था इसलिए द्रौपदी को कृष्णा भी कहा जाता है। पांच पति होने के कारण जो पति को पांचाली भी कहा जाता है।

Krishna Draupadi Katha

राजा द्रुपद अपनी पुत्री द्रौपदी का विवाह श्री कृष्ण से करवाना चाहते थे। लेकिन द्रौपदी तो श्रीकृष्ण को अपना प्रिय सखा मानती थी और कृष्ण भी द्रौपदी को प्रिय से कम मानते थे। द्रौपदी और श्री कृष्ण के बीच मुलाकात हुई। तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अर्जुन के बारे में बताया और कहा कि वह आर्यों में श्रेष्ठ है और तुम्हारे लिए उत्तम है। इस तरह भगवान श्री कृष्ण की द्रौपदी और अर्जुन की तरफ आकर्षित हुआ था। श्री कृष्ण और द्रौपदी दोनों मित्रतापूर्वक व्यवहार करते थे।

Krishna Draupadi Katha

Krishna Draupadi Katha : द्रौपदी ने बांधी थी भगवान श्री कृष्ण को पट्टी

महाभारत के मुताबिक भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया था। तब भगवान श्रीकृष्ण की अंगुली कट गई थी और उसमें से निरंतर खून बह रहा था। तब द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवान श्री कृष्ण की अंगुली पर पट्टी बांधी थी। तभी श्री कृष्ण ने कहा था कि मैं इस बात को हमेशा याद रखूंगा और भविष्य में इस साड़ी के टुकड़े ही कीमत जरूर चुकाऊंगा।

Krishna Draupadi Katha : श्री कृष्ण ने बचाया द्रौपदी का चीर हरण

जब पांडव कौरवों से जुए में हार गए थे। तब उन्होंने अपनी पत्नी द्रौपदी को ही दांव पर लगा दिया था और उनकी पराजय हुई थी। तब भरी सभा में दुर्योधन ने दुशासन को द्रौपदी को लाने के लिए बोला। दुशासन जो द्रौपदी के केश पकड़ कर उनको सभा में घसीटता हुआ लेकर आया।

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जब दुर्योधन दुशासन से द्रौपदी का चीर हरण करने के लिए कहा तब दुशासन द्रौपदी की तरह बढ़कर चीर हरण करने लगा। तब द्रौपदी ने हाथ जोड़कर आंखें बंद कर कर भगवान श्री कृष्ण को याद किया था। भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के द्वारा बांधी गई साड़ी का कर्ज चुकाते हुए उस समय द्रौपदी की लाज बचाई।

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