Mustard Farming : सरसों की इस नई किस्म से किसानों को मिलेगा अधिक फायदा, 100 दिनों में भरपूर उत्पादन और तेल की मात्रा भी अधिक
Mustard Farming : किसानों के लिए खरीफ की कटाई पूरी हो चुकी है और अब रबी की बुवाई का सीजन आ चुका है. इस सीजन में किसान के दिमाग में यही विचार आ रहा है कि रबी की कौन सी ऐसी फसल लगाई जाए जिससे कि हम डबल मुनाफा कमा सकें. ऐसा विचार आपके मन में भी आ रहा है तो हम आपको बता दें कि रबी की फसल में सरसों की खेती आपको डबल मुनाफा दिला सकती है.
भारत में सरसो को नकदी फसल भी कहा जाता है जो रबी के सीजन में बुवाई की जाती है. ज्यादातर सरसों की खेती तेल के उत्पादन के लिए की जाती है. भारतीय बाजारों में सरसों की डिमांड ज्यादा होती है इसलिए किसान चाहते हैं कि अच्छी से अच्छी किसम की बुवाई करें ताकि उत्पादन भी अच्छा हो. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार किसानों को ज्यादा मुनाफा प्राप्त प्राप्त होने के लिए नई-नई किस्मो का उत्पादन किया जा रहा है. इनमें से एक उत्तम किस्म है पूसा सरसों-28, जिससे किसानों को अच्छा उत्पादन प्राप्त होगा.
Mustard Farming : उन्नत किस्म है पूसा सरसों 28
किसानों को सरसों की इस नई किस्म से अच्छा उत्पादन प्राप्त होगा. ये सरसों की उन्नत किस्में है और इसे पकने में 105 से 110 दिन का समय लगता है. अगर इनके उत्पादन की बात करें तो इनका उत्पादन 1750 से 1990 किलोग्राम तक होता है. किसान सरसो की इस किस्म का उत्पादन तेल निकालने के लिए ही नहीं बल्कि पशुओं के लिए हरे चारे के लिए भी कर सकते हैं. इस किस्म के बीजों में 21% तक तेल की मात्रा पाई जाती है. पूसा 28 किस्म पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. इन राज्यों की जलवायु और मिट्टी सरसों की इस किस्म के लिए काफी अच्छी है.
Mustard Farming : इन बातों का रखें ध्यान
रबी के सीजन में सरसों की खेती के लिए 5 अक्टूबर से लेकर 25 अक्टूबर तक बुवाई का समय सही माना जाता है. सरसों के उत्पादन में अधिकता के लिए किसानो को खेत में छिड़काव विधि या कतार विधि का उपयोग करना सही रहेगा. ऐसा करने से आप फसलों का ध्यान भी अच्छे से रख पाएंगे और निराई गुड़ाई का काम भी अच्छे से हो जाएगा.
इसकी बुआई के लिए किसान सीड ड्रिल या देशी हल का उपयोग कर सकते हैं. सरसों के बीजों की खेती करते समय ध्यान रखना चाहिए कि बीजो की लाइनों के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी और पौधे के बीच 10 से 12 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए.