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Rudravatar: ये है रुद्रावतार काल भैरव की उतप्ति की पौराणिक कथा? जाने पूरा सच

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Rudravatar: इस साल काल भैरव जयंती 16 नवंबर यानी कि आने वाले बुधवार के दिन आने वाली है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मार्गशीर्ष महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि कों मनाई जाती है। इस दिन खासतौर पर पूरे विधि विधान के साथ काल भैरव देवता की पूजा की जाती है। यहां तक कि हमारी पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा बताया गया है कि जो भी व्यक्ति काल भैरव देवता की पूजा करता है, उसे अकाल मृत्यु और रोग और दोष जैसी परेशानियों का जरा भी डर नहीं रहता। देखा जाए तो काल भैरव को भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है। आज हम आपको बताएंगे कि काल भैरव का जन्म कैसे हुआ? क्या है इसकी पौराणिक कथा आइए जानते हैं?

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Rudravatar: कैसे हुई काल भैरव की उत्पत्ति:

हमारे शिव पुराण में ऐसा बताया गया है कि काल भैरव भी भगवान शिव के ही अवतार है। यहां तक कि इनके रुद्र अवतार से यमराज भी थरथर कांपने लगते हैं। यह काल से पूरी तरह से परे होने के कारण ही इन्हें काल भैरव के नाम से बुलाया जाता है।

हमारे हिंदू धर्म में शास्त्रों के अनुसार ऐसा बताया गया है कि 1 दिन त्रिदेव यानी कि ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शंकर के बीच इस बात पर बहस हो रही थी कि सबसे सर्वश्रेष्ठ कौन? जब इन तीनों देवताओं को इस बात का उत्तर नहीं मिला तो इन्होंने ऋषि-मुनियों से पूछना शुरू किया कि इनमें से सबसे सर्वश्रेष्ठ देवता कौन सा है? ऋषि-मुनियों ने काफी सोच-विचार कर बताया कि भगवान शंकर ही सबसे सर्वश्रेष्ठ देवता है।

ऋषि मुनियों की यह बात सुनने के बाद भगवान ब्रह्मा जी का एक सर गुस्से से तप कर जलने लग गया था। इतने ज्यादा गुस्से में आ गए कि उन्होंने भगवान शंकर का अपमान करना शुरू कर दिया। भगवान ब्रह्मा जी द्वारा अपमान किए जाने पर भगवान शंकर इंतजार ज्यादा क्रोधित हो गए कि उन्होंने एक रूद्र अवतार ले लिया। जिस वजह से इस अवतार को काल भैरव के नाम से बुलाया जाने लगा।

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काल भैरव अत्यंत ही भयंकर अवस्था में आकर ब्रह्मा जी के जलते हुए सर को तुरंत ही काटकर अलग कर दिया। और तो और इसीलिए कहा जाता है कि भगवान शिव पर ब्रह्म हत्या का आरोप है। आगे चलकर भगवान शिव ने काल भैरव देवता को कहा कि वह पृथ्वी के सभी तीर्थ स्थानों पर यात्रा करें और काल भैरव ने ऐसा करना शुरू कर दिया। आखरी में जाकर जब काल भैरव काशी पहुंचे तो तब जाकर काल भैरव के ऊपर से ब्रह्मा हत्या का दोषमुक्त हो गया।

आप लोगों की जानकारी के लिए बता दे कि काल भैरव को काशी नगरी इतनी सुंदर और प्यारी लगी कि वह हमेशा के लिए वहीं पर ही बस गए। उस दिन के बाद ऐसा कहा जाता है कि काशी नगरी के देवता भगवान शंकर है और उस नगर के कोतवाल यानी कि संरक्षण करने वाले काल भैरव जी है। हमारे हिंदू धर्म के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि काशी नगरी में जो भी भगवान शिव की पूजा करने के लिए जाता है। उसे वहां जाने के बाद काल भैरव की भी पूजा करनी होती है, वरना इस पूजा को अधूरा माना जाता है।

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