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Himachal News: आंगनवाड़ी वर्करों को ग्रेच्यूटी देने और कर्मचारी घोषित करने के लिए भेजा माँगपत्र

Himachal News: सीटू से सबंधित आंगनवाड़ी व्रकर्ज यूनियन ने आज सर्वोच्च न्यायालय को आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं एवं सहायिकाओं को ग्रेच्युटी देने के निर्णय सुनाए जाने का एक वर्ष पूरा होने और इसे अभी तक केंद्र और राज्य सरकार द्धारा लागू न करने के बारे केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को उपायुक्त के माध्यम से माँगपत्र भेजा।

जिसका नेतृत्व यूनियन की ज़िला प्रधान हमिन्द्री शर्मा और कंचन, सरला, पम्ममी, लता, अयोध्या, मीना, पुष्पा, काजल किरण के अलावा सीटू के ज़िला महासचिव राजेश शर्मा और गोपेंद्र शर्मा भी इस दौरान मौजूद रही।

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को श्रमिकों के रूप में माना जाना चाहिए

राजेश शर्मा ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने इस ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को श्रमिकों के रूप में माना जाना चाहिए और वे ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 के

मानदेय’ के नाम उन्हें भुगतान किए जा रहे पारिश्रमिक को ‘मजदूरी’ के रूप में माना जाना चाहिए

तहत ग्रेच्युटी के हकदार हैं। न्यायालय ने यह भी कहा कि ‘मानदेय’ के नाम उन्हें भुगतान किए जा रहे पारिश्रमिक को ‘मजदूरी’ के रूप में माना जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य और केंद्र सरकारों को ‘आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को बेहतर सेवा शर्तें प्रदान करने के लिए तौर-तरीके खोजने’ का भी निर्देश दिया है।

1975 के बाद से अभी तक हमें श्रमिकों के रूप में मान्यता भी नहीं दी गई है

लेक़िन हैरानी कि बात है कि पिछले एक साल से महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस आदेश की पूरी तरह से अनदेखी की है, जिसका सीधा असर हमारे देश की करीब 26 लाख महिला कर्मियों के जीवन पर पड़ रहा है।यह देश के लिए शर्म की बात है कि जब हम अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ को ‘अमृतकाल’ के रूप में मना रहे हैं, ऐसे में हमारे आधे बच्चे कुपोषित हैं और देश को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए निःस्वार्थ भाव से सेवा करने वाली आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाएं घर-घर तक सेवाएं पहुंचा रही हैं, लेकिन 1975 के बाद से अभी तक हमें श्रमिकों के रूप में मान्यता भी नहीं दी गई है। हमें श्रमिकों/कर्मचारियों के रूप में न्यूनतम वेतन या किसी अन्य वैधानिक हकदारी का भुगतान नहीं किया जाता है। दशकों तक समर्पित सेवा के बाद, हमें बिना किसी सेवानिवृत्ति लाभ या पेंशन के ‘सेवानिवृत्ति’ के नाम पर जबरन सेवा से बाहर कर दिया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर इन सिफारिशों को लागू करने की जरूरत है

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को नियमितीकरण, न्यूनतम वेतन और सामाजिक सुरक्षा तथा पेंशन पर 45वें और 46वें आईएलसी की सर्वसम्मत सिफारिशों को लंबे समय से मंत्रालय द्वारा इस तर्क के साथ दरकिनार कर दिया जाता है वे ‘स्वयंसेवक’ हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर इन सिफारिशों को लागू करने की जरूरत है कर्नाटक सरकार वर्करों के लंबे संघर्ष के बाद वर्कर्स को ग्रेच्युटी देने के लिए सहमत कर सके हैं, लेकिन भारत सरकार ने अभी तक इसे लागू करने में अपने हिस्से का फैसला नहीं किया है। गुजरात, जहां हमारी यूनियन ने सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई जीत ली है के अलावा अब हम अन्य सरकारों से इस फैसले को लागू करवा रहे हैं। कई राज्य सरकारें आपके मंत्रालय को सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने के खर्च के हिस्से के बारे में स्पष्टीकरण के लिए पहले ही लिख चुकी हैं, लेकिन दुर्भाग्य से आपके मंत्रालय ने जवाब तक नहीं दिया।

श्रमिकों की सेवा शर्तों में एकरूपता लाने के लिए कोई उपाय नहीं किया है

आपके मंत्रालय ने अभी तक श्रमिकों की सेवा शर्तों में एकरूपता लाने के लिए कोई उपाय नहीं किया है जो एक राज्य से दूसरे राज्य में भिन्न होता है। 2018 के बाद, आपके मंत्रालय द्वारा हमारे वेतन में संशोधन नहीं किया गया है।इस पृष्ठभूमि में, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स (आइफा) के बैनर तले आज पूरे देश में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएं 25 अप्रैल 2023 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पहली वर्षगांठ पर देश भर में विरोध प्रदर्शन कर रही हैं और सरकार को इसे लागू करने की मांग कर रही हैं।

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