Ram Katha: जानिए अंगद को दूत बनाकर लंका भेजनें के पीछे क्या थी कहानी?
Ram katha: भगवान श्री राम, माता सीता के अपहरण के बाद दुखी रहते थे और उन्हें खोजने का हर संभव प्रयास करते थे. इतने दिन से सुबेल पर्वत पर सूर्योदय का समय भगवान श्रीराम ने सभी मुख्य लोगों को बुलाकर विचार-विमर्श किया कि आप सभी लोग मुझे सुझाव दीजिए कि मुझे आगे क्या करना चाहिए? तो फिर जामवंत जी ने श्री राम के चरणों में शीश झुकाते हुए कहा कि, हे परम ज्ञानी, आप सबके हृदय की बात जानते हैं. हे बुद्धि, तेज, बल, धर्म और गुणों की राशि के ज्ञाता, मैं आपको अपनी बुद्धि के अनुसार सुझाव देता हूं कि बाली पुत्र अंगद को दूत बनाकर आप रावण के पास भेजिए.
श्रीराम ने अंगद से पूछा ये सवाल
जामवंत जी की बात सभा में उपस्थित सभी लोगों को सही लगी और सभी ने अपनी सहमति जताते हुए कहा कि यही ठीक रहेगा. अंगद बलवान होने के साथ ही बुद्धिमान भी हैं. प्रभु श्री राम ने अंगद से पूछा कि हे बल, बुद्धि और गुणों के सागर बाली पुत्र अंगद, क्या आप मेरे इस काम के लिए लंका जाओगे? तुम्हें कुछ भी बात समझाने की जरूरत नहीं है क्योंकि मुझे पता है तुम बहुत तेज और बुद्धिमान हो. शत्रु से कैसे बात करनी है आपको पता है. ऐसे बात करना कि हमारा काम भी हो जाए और उसका भी कल्याण हो जाए.
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अंगद ने खुशी जताते हुए कही ये बात
श्री रामचरितमानस में महात्मा गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि प्रभु श्री राम की साधारण बात को आदेश मानकर बाली कुमार अंगद अपनी जगह से उठे और श्री राम के पैरों में शीश झुकाते हुए बोले, हे भगवान श्री राम, जिस पर आपकी कृपा हो वही गुणों का सागर हे. प्रभु के तो सभी कार्य सफल हो जाते हैं. आपने अपने कार्य से मुझे लंका भेज कर सम्मान दिया है. यह बात सुनकर बाली कुमार अंगद बहुत प्रसन्न हुए हैं और भगवान के चरणों में शीश झुका कर साथ ही बाकी बैठे सभासदों और वरिष्ठ जनों का आशीर्वाद लेकर अपने लक्ष्य की तरफ चल दिए.
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अंगद ने लंका में मचाया कोहराम
जैसे कि श्री राम की आज्ञा से अंगद लंका में पहुंचे तो उनकी मुलाकात रावण के पुत्र से हो गई. रावण का पुत्र वहां खेल रहा था. बातों ही बातों में अंगद और उसके बीच झगड़ा हो गया. दोनों ही युवा और काफी बलवान थे. जब रावण के पुत्र ने शालीनता भंग करते हुए अंगद पर लात उठाई तो गुस्से में अंगद ने पैर उसका पकड़कर हवा में घुमाते हुए जमीन पर पटक दिया. ऐसा दृश्य देखकर रावण के पुत्र के साथ चलने वाले राक्षसी समूह डर गए और इधर-उधर भागने लगे. रावण के पुत्र की मृत्यु हो गई ऐसा सोच कर सभी वहां से भाग गए. जब यह बात पूरी लंका में फैल गई तो लंकावासी सोचने लगे कि जिस वानर ने लंका में आग लगाई थी, वही वानर वापस आ गया है.
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