Tulsi Vivah: तुलसी और शालीग्राम के विवाह की ये है पौराणिक कथा? शायद आप नहीं जानते होंगे इसके बारे में…
Tulsi Vivah: हिंदू धर्म के अनुसार तुलसी के पौधे को एक अलग ही महत्व दिया गया है। देखा जाए तो तुलसी के पौधे को सबसे ज्यादा पवित्र माना जाता है। हमारे बड़े बुजुर्गों का ऐसा कहना है कि तुलसी के पौधे में देवी देवता वास करते हैं। यदि अगर आप रोजाना तुलसी के पौधे में जल चढ़ाते हैं तो आपके घर की सारी नकारात्मक ऊर्जा घर से बाहर चली जाती है। तुलसी विवाह के दिन सभी सुहागन औरतें तुलसी माता से अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं और उनकी जोड़ी सही सलामत रहे इस बात का आशीर्वाद मांगते हैं। तुलसी विवाह वाले दिन सुहागन औरतें पूरी विधि विधान के साथ तुलसी माता और शालिग्राम की शादी करवाते हैं। आज हम आपको तुलसी विवाह की पौराणिक कथा सुनाने जा रहे हैं।
Tulsi Vivah: तुलसी विवाह की पौराणिक कथा:
हमारी पौराणिक कथा में ऐसा लिखा गया है कि भगवान शिव के तेज से जालंधर उत्पन्न हुआ। जालंधर ने पृथ्वी के सभी ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया था। यहां तक कि सभी मानव जाति बहुत परेशान हो गई थी। सभी देवी देवताओं और ऋषि मुनि परेशान होकर भगवान शिव के शरण में चले गए और इस अत्याचार से बचने का उपाय मांगने लगे। लेकिन देखा जाए तो जालंधर को युद्ध में हराना और मार देना बड़ा ही मुश्किल का काम था। क्योंकि इस पराक्रमी जालंधर के पीछे उनकी पतिव्रता पत्नी वृंदा के पुण्य का फल उनके पति को मिल रहा था।
जिस वजह से जालंधर को कोई भी पराजय नहीं कर पा रहा था। पत्नी वृंदा के पतिव्रता धर्म को तोड़ने के लिए भगवान शिव ने जंतर का रूप धारण कर पत्नी वृंदा को स्पर्श किया। ऐसा करने से पत्नी वृंदा का पतिवर्ता धर्म टूट गया और ऐसे हो जाने पर ही जालंधर को युद्ध में पराजित किया गया। जब पत्नी वृंदा को इस बात का पता चला है कि उनके साथ छल हुआ है तो उन्होंने तुरंत ही विष्णु भगवान को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। लेकिन विष्णु भगवान ने उस श्राप को भी हंसते हंसते स्वीकार कर लिया। फिर देखते ही देखते विष्णु भगवान ने पत्थर का रूप धारण कर दिया। फिर आगे चलकर लक्ष्मी माता ने वृंदा से विनती की कि वह उनका श्राप वापस लेकर विष्णु भगवान को ठीक कर दे।
माता लक्ष्मी की बात सुनकर माता वृंदा ने अपने श्राप को वापस ले लिया और अपने पति जालंधर का कटा हुआ सर अपने गोद में रख कर सती हो गई। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि माता वृंदा के सती होने पर उनकी राख से एक पौधा निर्मित हुआ था। उस पौधे का नाम विष्णु भगवान ने तुलसी रख दिया। भगवान विष्णु ने कहा कि मेरे पत्थर के बने हुए रूप को शालिग्राम नाम से बुलाया जाएगा। भगवान विष्णु ने कहा कि तुलसी के पौधे में शालिग्राम को रखकर पूजा की जाएगी। उस दिन से ही कार्तिक महीने मे तुलसी और शालिग्राम का विवाह हुआ था।