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गुजरात में राजनैतिक दलों ने भुनाया पेसा एक्ट, बना आदिवासी वोट बैंक


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The PESA act: गुजरात में ग्रामीण आदिवासी क्षेत्रों में स्वशासन का अधिकार सुनिश्चित करने हेतु 1996 में पेसा एक्ट बना था. जबकि या एक्ट आज तक लागु हो ही नहीं सका है, हालाँकि सभी राजनैतिक दलों द्वारा गुजरात जीतने को लाकर पेसा एक्ट को पर बढ़ चढ़ कर वादे किये जा रहें है, ताकि राजनैतिक दल गुजरात के आदिवासी वोट को भुना सके. लेकिन अखिर क्आया है ये पैसा एक्ट कानून है.

क्या है पेसा एक्ट

पेसा एक्ट को 1996 में लागू किया गया था. इसे पंचायत एक्सटेंशन टू दि शेड्यूल एरियाज (The Panchayats (Extension to the Scheduled Areas) Act) के तहत लाया गया था. सरकार का इस कानून को लाने का उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों या आदिवासी क्षेत्रों में रह रहे लोगों के लिए ग्राम सभा के द्वारा स्वशासन को सुनिश्ति करना व् बढ़ावा देना था. आपकों बता दें कि यह कानून आदिवासी समुदाय को स्वशासन के तहत खुद की प्रणाली पर आधारित सत्ता का अधिकार प्रदान करता है. यह एक्ट ग्राम सभा को विकास योजनाओं को मंजूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है. यह एक्ट आदिवासियों को वनों के संसाधनों का समुचित इस्तेमाल करने का भी अधिकार मिलता है.

आपकों बता दें कि देश के पेसा एक्ट के तहत आदिवासियों को स्वशासन का अधिकार दिया जाना सुनिश्जाचित किया गया है. और यही एक्गुट गुजरात चुनाव में मुख्जय मुद्रादा भी बना हुआ है. आपको बता दें कि गुजरात के 10 जिलों में आदिवासियों की बहुत लम्बी चौड़ी आबादी निवास करती है. गुजरात की लगभग 8.1 प्रतिशत आबादी जनजातीय समुदायों से जुडी हुई है. ऐसे में इस एक्ट को लेकर हर राजनैतिक दल इस आबादी के वोट बैंक को भेदने के लिए एडी छोटी का जोर लगा रहा है. गुजरात में इस वर्केष के अंत तक विधानसभा चुनाव हो सकते है. जहाँ राज्य में तीन दशक से बीजेपी का ही परचम लहराता रहा है, लेकिन इस बार वहां आम आदमी पार्टी की दस्तक ने भाजपा के वोट बैंक को हिला दिया है. यहाँ पर आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल सहित सभी राजनीतिक दलों द्वारा बड़ी बड़ी जन सभाएं भी की जा रही है. इससे भी भाजपा के गढ़ में बैचेनी का माहौल बना हुआ है. जिसमे आग में घी डालने का काम सभी राजनैतिक दलों द्वारा आदिवासियों के लिए छह सूत्री गारंटी के साथ ही पेसा एक्ट को सख्ती से लागू करने की घोषणा की ने किया है. इस घोषणा के कारण यह मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है.

आदिवासी वोट बैंक पर नजर

गुजरात के विधानसभा चुनाव 2022 में इस कानून पर सभी राजनैतिक दलों की नज़र बनी हुई है. इसका समीकरण ऐसे समझ सकते है कि गुजरात में 10 जिले अनुसूचित क्षेत्र के तहत आते हैं, जहां पर लगभग 8.1 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों की आबादी निवास करती है. इसके आलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से सटे इलाकों में आदिवासियों वोटर्स की संख्या भी अधिक है . राज्य में करीब 11 बड़ी जनजातियां हैं जिनमें सबसे ज्यादा भील है. राज्य की कुल जनजातीय आबादी में 48 प्रतिशत हिस्सेदारी भील की है. इसलिए सभी पार्टियों की नजर आदिवासी वोट बैंक पर बनी है और इस एक्ट को लागु करवाने की घोषणा से इस आबादी के बहुत बड़े बैंक को भेदना चाहते है.

गुजरात में क्या है स्थिति

इस कानून के तहत आदिवासी इलाकों में पंचायतों के अलावा नगर पालिकाओं और सहकारी समितियों के गठन का प्रावधान है. 2017 में गुजरात ने राज्य में पेसा नियमों को अधिसूचित किया और इसे 14 जिलों के 53 आदिवासी तालुका के 2,584 ग्राम पंचायतों के तहत 4,503 ग्राम सभाओं में लागू किया. पिछले विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन सीएम विजय रूपानी ने छोटा उदयपुर में इसकी घोषणा की थी. पांच साल बाद, वर्तमान सीएम भूपेंद्र पटेल ने मंगलवार को दाहोद में एक रैली में दावा किया गया कि सभी आदिवासियों को अधिनियम के तहत कवर किया गया है और इसके प्रावधानों के तहत अधिकार दिया गया है. हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अधिनियम को अक्षरश: लागू नहीं किया गया है

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